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Oudh Bar Association

अवध बार एसोसिएशन की स्थापना 19 मई 1901 को हुई थी।अवध बार ऐसासिएशन के 120 वर्षो के गौरवशाली अतीत को जानने समझने के लिए हमें सर्व प्रथम अवध के इतिहास एवं उच्च न्यायालय लखनऊ (चीफ कोर्ट ऑफ अवध) के इतिहास पर सम्यकदृष्टि डालनी होगी। इस लिए इस आलेख को तीन खण्डो में संजोया जा रहा है।


  • अवध का इतिहास
  • चीफ कोर्ट ऑफ अवध का इतिहास
  • अवध बार एसोसिएशन का इतिहास

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    अवध का इतिहास

    अवध का इतिहास अनादिकालसे है। यहाँ के राजा मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम थे, जिन के पूर्वजों ने ही अवध की स्थापनाकी थी। श्रीराम के 121 पूर्वजों और वंशजों का वर्णन लखनऊ स्थित राजकीय संग्रहालय में सुरक्षित है ।यहाँ प्रदर्शित राजकीय चिन्ह श्रीराम जी के युग के ही हैं। लखनऊ की स्थापना श्रीरामजी के अनुज वीर पुरूष श्री लक्ष्मण ने की थी। एक अन्य मान्यता के अनुसार लखनऊ की स्थापना महाराजा लाखन पासी द्वारा की गयी थी,जो 11वी सदी के सरदार थे।

    भौगोलिक रूप से अवध की आधुनिक परिभाषा- लखनऊ, सुल्तानपुर, रायबरेली, उन्नाव, कानपुर, भदोही, प्रयागराज, बाराबंकी, अयोध्या,अम्बेडकरनगर, प्रतापगढ, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, हरदोई, लखीमपुर-खीरी, कौशाम्बी, सीतापुर, श्रीवस्ती, उन्नाव, फतेहपुर, कानपुर, (जौनपुरऔर मिर्ज़ापुर के पक्षिमी हिस्सों )।कन्नौज, पीलीभीत, शाहजहांपुर से बनती है। प्राचीन काल में अवध की राजधानी "अयोध्या" थी।

    कालांतर में मुगलों के भारतवर्ष पर आकमण के पश्चात् धीरे-धीरे अवध का राज्य मुगलों के अधीन होता गया। पर समय के साथ मुगल-शक्ति का हास होता गया और शहशाहों का जोर कम होने लगा। वे धीरे-धीरे पहले अपने जागीर दारों के कठपुतले और अंततः कैदी बनते गए, साथ ही साथ अवध और शक्तिशाली व अधिक स्वाधीन होता गया।

    सन् 1764 ई0 में बक्सर के युद्ध में अवध के नवाब हार गए, परन्तु लार्ड क्लाइव ने अवध उन को लौटा दिया, केवल इलाहाबाद और कडा जिलों को क्लाइव ने मुगल सम्राट शाहआलम को दे दिया। वारेन हेस्टिंग ने पीछे नवाब की सहायता कर के रूहेलखंड को भी अवध में सम्मिलित करा दिया और शाहआलम से प्रसन्न होकर प्रयागराज और कड़ा को अवध के नवाब के सुपुर्द कर दिया।

    शुजाउद्दौला के पुत्र आसफूदौला 1775 ई0 में राजधानी फैजाबाद (अयोध्या) से लखनऊ ले गए और उन्होंने लखनऊ को भारत के सबसे रईस और चमचमाते शहरों में से एक बना दिया। कहा जाता है, कि अपनी माँ की सख्ती से बचने के लिए उन्होने यह स्थानातंरण किया।

    1775 ई0 में ही अग्रेजों ने अवध के नवाब से बनारस का जिला ले लिया और 1801 मेंरूहेलखंड भी ले लिया। इस प्रकार अवध कभी बड़ा कमी छोटा होता रहा।

    1836 ई0 में अग्रेजों ने नार्थ-बेस्टन प्रोविंस बनाया, जिसगें आगरा एवं अवध क्षेत्र थे।

    1857 ई0 के विद्रोह में अवध अग्रेजों के हाथ से निकल गया था। परन्तु डेढ़ वर्ष की लडाई में अतिंम विजय अग्रेजों की हुई। 1902 में नार्थ बेस्टन प्रोविंस जिसमें आगरा और अवध के प्रांतों को एक में मिलाकर नया प्रांत बनाया था, का नाम आगरा और अवध का "सयुक्त प्रांत" रखा गया, जिसे संक्षेप में "संयुक्त प्रांत' अथवा अंग्रेजी में केवल यू0पी0 कहा जाता था।इसी प्रांत का नाम करण उत्त्तर प्रदेश हों गया है, जिसे अग्रेजी में लिखे नाम केआदि अक्षरों केआधार पर अब भी यू0पी0 कहा जाता है।




    चीफ कोर्ट ऑफ अवध का इतिहास

    1838 में आगरा व अवधके क्षेत्रों को मिला कर नार्थ-नवेस्टर्न प्रौविंस बना। प्रशासन का केन्द्र आगरा रहा |

    1858 में अवध के लिए चीफ कॉमिशनर ऑफ अवध की नियुक्ति हुई। यही कालांतर में उच्चन्यायालय, लखनऊ के रूप में स्थापित हुई, जिसका संक्षिप्त इतिहास निम्नवत हैं।

    1858 में लार्डे कैनिंग ने प्रशासन की दृस्टि से केन्द्र आगरा से इलाहाबाद शिफ्ट किया। इलाहाबाद को अग्रेजों नेअपनी सुविधानुसार केन्द्र बनाया, क्यों कि वहां रो वे बिहार, उड़ीगा, रोंटरप्रोविन्श (मध्य प्रदेश ) आदि क्षेत्रों पर पकड़ रखते थे|
    1861 में High Court Act पारित हुआ,जिस में तीन प्रेसिडेंसी टाउन, कलकत्ता,मद्रास, बॉग्बे हाई कोर्ट बने|

    1866 में “हाई कोर्ट फॉर नार्थ वेस्ट प्रौविन्स' की स्थापना हुई। पहली सिटिंग आगरा में हुई।अवध के क्षेत्र के लिए चीफ कमिशनर अवध की व्यवस्था चलती रही|
    1869 में पहली बार इलाहाबाद में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू वाली बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ, क्योंकि आगरा की बिल्डिंग को अपयॉप्त पाया गया।
    1911 में इलाहाबाद की नई बिल्डिंग बनना शुरू हुई और 27 नवम्बर 1916 को नई बिल्डिंग में कार्य प्रारम्भ हुआ।
    1911 में इलाहाबाद की नई बिल्डिंग बनना शुरू हुई और 27 नवम्बर 1916 को नई बिल्डिंग में कार्य प्रारम्भ हुआ। पहली बार "हाई कोर्टऑफ जुडिकेचर ऐट इलाहाबाद” नाम 11 मार्च 1919 में रखा गया।
    1925 में लखनऊ में चीफ कोर्ट ऑफ अवध में चीफ जस्टिस के साथ 4 अन्य जज की नियुक्ति का प्राविधान हुआ।
    1947 में देश आजाद होने के बाद चीफ कोर्ट ऑफ अवध व इलाहाबाद उच्च न्यायालय का amalgamation हुआ जिसका क्लॉज -14 बहुत महत्वपूर्ण है।

    Clause 14 of 1948 Order
    “The new High Court, and the Judges and division Courts thereof, shall sit at Allahabad or at such other places in the United Provinces as the Chief Justice may, with the approval of the Governor of the United Provinces, appoint; Provided that unless the Governor of the United Provinces with the concurrence of the Chief Justice otherwise directs, such judges of the new High Court, not less than two in number, as the Chief Justice may from time to time nominate, shall sit at Lucknow in order to exercise in respect of cases arising in such area in Oudh as the Chief Justice may direct, the Jurisdiction and power for the time being vested in the new High Court.

    उक्त क्लॉज का इंटरप्रेटेशन माननीय उच्चतम न्यायालय ने नसीरूददीन के केस में किया है।
    The order describes the High Court as the new High Court. The two High Courts have amalgamated in the new High Court. The seat is at Allahabad or at such other places as may be determined. There is no permanence attached to Allahabad. If that were the intention of the Order, the word "and" instead of the word "or" would have been used. Other places may be determined by the Chief Justice in consultation with the Governor. It is left to prudence of the authorities mentioned as to what other places should be determined. In the normal understanding of the matters, it is left to the discretion of the authorities as to whether the seats at Allahabad as well as at Lucknow will be changed. Both places may continue. Both places may be changed. Lucknow is the seat of the Government. Allahabad has also the history that the High Court was there before the order. Lucknow has been the principal place of oudh. The order aimed at giving status to the Chief Commissioner's Court as that of the High Court. It is difficult to foresee the future whether the authorities will change the lacation to other places but no idea of permanent seat can be read into the order. One can only say that it is the wish and hope that both Allahabad and Lucknow will be the two important seats so that history is not wiped out and policy is not changed.

    उक्त के पश्चात् से लखनऊ उच्च न्यायालय कैसरबाग स्थित पुराने भवन में वर्ष 2016 तक पूर्वोत्तर चलता रहा ।वर्ष 2016 में उच्च न्यायालय लखनऊ का भवन, गोमती नगर स्थित नवनिर्मित इस भवन में स्थानान्तरित हुआ।

    अवध बार एसोसिएशन का इतिहास

    चीफ कोर्ट ऑफ़ अवध में वकीलों को एक संगठन की आवश्यकता महसूस हुईं एवं इस प्रकार उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ के साथ हीं वर्ष 1901 में अवध बार एसोसिएशन की स्थापना हुई। अवध बार एसोसिएशन के सदस्यों ने जहां एक ओर विधि विज्ञान के क्षेत्र में अपनी वक्त्रता वाकपटुता व लेखन शैली से देश के संपूर्ण विधिक जगत को चमत्कृत किया वहीं दूसरी ओर अवध बार एसोसिएशन के अनके सदस्यों ने कोर्ट इन अवध चीफ कोर्ट इन अवध तथा उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों के रूप में दिए अपने निर्णयों से विधि जगत तथा विधिक साहित्य को समृद्ध किया। अवध बार एसोसिएशन के माननीय सदस्यों ने विधिक जगत में अपनी सक्रियता व कुशलता के साथ-साथ सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाई।अवध बार एसोसिएशन के अनके सदस्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे।आजादी के पूर्व के अतिरिक्त सरकार के सदस्य तथा स्वतंत्रता पश्चा उत्तर प्रदेश विधानसभा, विधानपरिषद्व उत्त्तर प्रदेश मंत्री के सदस्य, उत्तर प्रदेश के मंत्री तथा लोक सभा के सदस्य भी रहे।
    अवध बार एसोसिएशन की कार्यकारिणी गठन का भी इतिहास है। सन् 1901 में अवध बार एसोसिएशन के गठन के समय पर चीफ कोर्ट इन अवध की स्थापना सन् 1925 तक अवध बार एसोसिएशन के लिए केवल तीन पदाधिकारी चुने जाते थे, एक सचिव तथा वोसंयुक्त सचिव।चीफ कोर्ट इन अवध के गठन अर्थात् 1926 से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्षका भी चुनाव होने लगा।सन् 1933 से कार्यकारिणी चुनाव प्रकिया में कुछ परिवर्तन कर एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष, दोऑनरेरी सचिव, एक संयुक्त सचिव तथा एक ऑडिटर चुने जाने लगे।साथ ही 12 सदस्यों वाली एक कार्य समिति, 10 सदस्यों वाली एक पुस्तकालय समिति तथा 7 सदस्यों की एक विधिक राय देने हेतु स्थाई समिति का भी चुनाव होने लगा। सन् 1934 के मार्च माह में अवध बार एसोसिएशन के कुल 134 आवासीय (रेजिडेंट ) तथा 9 गैर-आवासीय (नॉन-रेजिडेंट) सदस्य थे। संस्था के कमिक विकास के सिद्धांत व समय की मांग के कारण अवध बार एसोसिएशन वर्तमान स्वरूप में दिखाई दे रहा है।

    सन् 1901 में अवध बार एसोसिएशन की प्रथम कार्यकारिणी में सेंट जॉर्ज एच0एस0 जैक्सन सचिव, सैयूयदजहूर अहमद तथा पंडित जगत नारायण संयुक्त सचिव चुने गए थे। अवध बार एसोसिएशन के प्रथम सचिव एच0एस0 जैक्सन तथा सचिव पंडित जगत नारायण फौज़दारी मामलों के सिस्मौर वकील कहे जाते थे।पंडित जगत नारायण के विषय में आज भी किवंदत्तियाँ है कि वे मुकदमे के तथ्यों को इस कौशल से प्रस्तुत करते थे कि फैसला उनके पक्ष में करना न्यायाधीशों की बाध्यता हो जाती थी।बाद में पंडित जगत नारायण के पुत्र श्री तेजनारायण मुल्ला इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा श्री आनंद नाशयण मुल्ला लखनऊ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हुए।

    श्री जैक्सन तथा पंडित जगत नारायण के बाद जयकरण नाथ मिश्रा तथा पंडित गोकरणनाथ ने फौजदारी की वकालत में पूरे देश में बड़ा नाम, यश व धन अर्जित किया।जयकरण नाथ मिश्रा बैरिस्टर थे तथा पंडित गोकरण नाथ मिश्रा जो कि दीवानी में वकालत के सिर मौरथे, के भाई थे।पंडित जयकरण नाथ मिश्रा आधुनिक विचारो के थे तथा अग्रेजी शिक्षा से अत्यधिक प्रभावित थे।उन्होंने अपने परिवार के सात सदस्यों को वकालत पढने के लिए बिलायत भेज | डॉआर0एफ0 बहादुर मुबई में बैरिस्टिर थे और यहां से आकर लखनऊ में बस गए थे।वह एक अत्यंत सच्चे व दयालु पारसी थे व निर्धन तथा जरुरतमंद व्यक्तियों की सहायता किया करते थे।श्री बहादुर जी वर्षों तक मृत्युपर्यनत (1951) अवध बार एसोसिएशन केअध्यक्ष रहे।उन्होनें वकालत पेशे को बडा सम्मानित बनाया तथा वकील समुदाय के लिए सम्मान अर्जित किया।

    श्री बहादुर जी के पश्चात् चौधरी नियामत उल्ला सर्व सम्मान से अवध बार एसोसिएशन केअध्यक्ष चुने गए।बैरिस्टर एच0जी0 वालफोर्ड फौजदारी वकालत में बहुत प्रसिद्ध हुए। 1946 में उन्हे न्यायाधीश बनाया बया, परन्तुआजादी के बाद 1948 में उन्होंने अपने पदसेइस्तीफादे दिया।वे विलायत वापस जाना चाहते थे।परन्तु गंभीर बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

    लगभग उसी समय में आजादी के 10 वर्ष पूर्व दीवानी वकालत मेंसर गुलामहसन भट॒ट, चौधरी रामभरोसे लाल, चौधरी हैदर हुसैन तथा श्री इफित खान हुसैन ने सम्मान अर्जित किया।

    सर गुलाम हसन भट्ट सामाजिक रूप से भी बहुत सक्रीय थे। जिस भवन में पहले अमेरिकन लाइब्रेरी थी तथा आज कल जिसमें परिवार न्यायालय है भट्ट साहब उसी भवन में निवास करते थे । जून 1946 में चीफ कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए तथा 1948 चीफ कोर्ट तथा इलाहाबाद उच्चन्यायालय के सम्मिलन के पश्चात् के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हुए तथा मई 1951 के उक्त पद से अवकाश ग्रहण करने के तुरंत पश्चात् उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

    श्री मोती लाल तिलहरी भी अपने मुकदमे तैयार करने तथा बहस करने में अति निपुण माने जाते थे बाद में उनके पुत्र श्री हरीनाथ तिलहरी वकालत के पश्चात् इस न्यायालय के एवं बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए।मनप्रति श्री हरीनाथ तिलहरी के पुत्र श्री रविनाथ तिलहरी की उच्च न्यायालय लखनऊ में नियुक्ति हुई |

    श्री आनंद नारायण मुल्ला न्यायाधीश के पद से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात् लखनऊ से आजाद उम्मीदवार की हैसियत से लोकसभा के लिए चुने गए बाद में उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया।

    सर इकबाल अहमद ने भी मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवा निवृत्त होने के बाद अधिवक्ता के रूप में ख्याति अर्जित की। बैरिस्टर एच0सी0 दास ने कोलकाता में वकालत प्रारम्भ की परन्तु वें लखनऊ आ गए त्तथा उस समय के मूर्धन्य वकील, बहु आयमी व्यक्तित्व के धनी सामाजिक व राजनैतिकरूप से प्रतिष्ठित श्री ए0 पी0 सेन के सहायक हुए। श्री दास फौजदारी, दीवानी तथा टैक्सेशन के प्रसिद्ध वकील हुए।उनका बार तथा बेंच में बड़ा सम्मान था।

    श्री हरि गोविंद दयाल श्री वास्तव दीवानी के बहुत नामी वकील हुए उनका व्यक्तित्व भी बहु आयामी था।श्री हरिगोविंद दयाल श्रीवास्तव, श्री एच0 के0 घोष के बाद मृत्यु पर्यनतअवध बार एसोसिएशन केअध्यक्ष रहे |

    अब कि चीफ कोर्ट तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सम्मिलन (1948) के पश्चात् अवध के वकीलों ने सोचा था कि सम्मिलन आदेश 1948 के अनुसार अवध के 12 जिलों के क्षेत्राधिकार के साथ कोई छेडछाड नहीं की जाएगी परन्तु तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने धीर-धीरे कंपनीला, टैक्सेशन तथा अन्य क्षेत्राधिकार इलाहाबाद उच्च न्यायालय को स्थानात॑रित करना प्रारम्भ कर दिया।फैजाबाद तथा सुल्तानपुर के समस्त क्षेत्राधिकार भी इलाहाबाद उच्चन्यायालय को स्थानातंरित कर दिया।इसकेअतिरिक्त उत्तरप्रदेश उच्चन्यायालय सम्मिलन आदेश 1948 के अंतर्गत धारा-14 के अंतर्गत आने सभी मुकदमें इलाहाबाद स्थानातंरित कर दिए।मुख्य न्यायाधीश के इस कृत्य से लखनऊ पीठ के अधिवक्ता ओ में भारी रोष व्याप्त हो गया। बाबू श्री हरि गोविंद दयाल श्रीवास्तव ने इस प्रकरण को बडी गंभीरता से सभी उपयुक्त मंचों से उठाया।

    नसीरूद्दीन बनाम स्टेट ट्रासंपोर्ट अपीलेट ट्रिब्यूनल वाद में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात् हमारी लखनऊ पीठ को अवध के 12 जिलो का क्षेत्राधिकार प्राप्त हुआ।बाबू हर गोविंद दयाल श्रीवास्तव अवध बार के हित में किया गया। यह संघर्ष और विजय अवध बार एसोसिएशन केइ तिहास में सदैव स्मरण किया जाएगा।बाद में उनके सुपुत्र वरिष्ठअधिवक्ता श्री उमेश चंद भीअवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हुए व इस प्रदेश के महाधिवक्ता भी रहे।बाबू उमेश चन्द्र की स्मृति में जो इस समय गोमतीनगर, विभूतिखण्ड में उच्चन्यायालय भवन के पास चौराहा का नामकरण किया गयाहै।

    बैरिस्टर बी0के0 धवन भी अत्यंत प्रसिद्ध वकील हुए वे अपने मुकदमे तैयार करने में बहुत परिश्रम करते थेऔर कभी भी आधी रात से पूर्व अपने चेंबर से नहीं उठते थे। उनके भतीजे न्यायमूर्ति श्री यू0के0 धवन इस पीठ के न्यायाधीश के रूप में सुशोभित हुए।

    वॉलफोर्ड के न्यायाधीश बनने के पश्चात् श्री आर0एस0 बहादुर जी तथा एस0सी0 दास के साथ-साथ एक अन्य अधिवक्ता श्री जी0 जी0 चटर्जी भी फौजदारी के प्रसिद्ध वकील हुए। वे जिला अदालतो में भी मुकदमे करते थे।वे अपनी जिरह करने की कला के कारण बहुत प्रसिद्ध हुए। जिरह करने के कला में अपनी प्रवीणता के कारण बहुधा पूरे देश में मुकदमे करने के लिए बुलाए जाते थे।

    इसी प्रकार श्री राज नारायण शुक्ला तथा श्री महावीर प्रसाद श्रीवास्तव भी बहुत सम्मानित और प्रसिद्ध वकील हुए। श्री महावीर प्रसाद श्रीवास्तव विधायक हुए और सी0वी0 गुप्ता के मत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे।श्री महावीर प्रसाद श्रीवास्तव के चेंबर में न्यायमूर्ति एम0 मुर्तजा हुसैन तथा मूर्धन्य वरिष्ठ अधिवक्ता श्री के0वी0 सिन्हा तथा न्यायमूर्ति उमेशचन्द्र श्रीवास्तव जैसे लबध प्रतिष्ठित वकील निकले जिन्होंने अपनी परिश्रम, लग्न और बुद्धिमत्ता से अवध बार का सम्मान बढाया।

    श्री नियामत उल्ला की मृत्यु के पश्चात् उनकी पाणिडतयपूर्ण पंरपराओं को श्री नसीरूद्दीनसिद्दकी तथा सैयूयद मोहम्मद हुसैन ने आगे बढाया।श्री सैयूयद मोहम्मद हुसैन अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे उन्होने कई पुस्तकें लिखी। श्री मोहम्मद हुसैन ने सवानामधनय पुत्र श्री सगीर अहमद के लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति बनने तक वेवकालत करते रहे।न्यायमूर्ति सगीर अहमद बाद में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी हुए।

    श्री श्रीधर मिश्र, श्री हरगोविंद दयाल श्रीवास्तव के बाद अवध बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हुए। वह दीवानी तथा फौजदारी दोनो विधाओं में परंगत थे।उनके चेंबर ने न्यायमूर्ति श्री बृजेश कुमार जैसे रत्न दिए जो पहले इस न्यायालय के न्यायाधीश रहे फिर गुवाहटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे फिर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हुए।इनके पुत्र श्री मनीष कुमार इस समय माननीय उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति है।

    श्री जयशंकर त्रिवेदी ने श्री एस0सी0 दास के सहायक के रूप में अपनी वकालत प्रारम्भ की उनके पूज्य पिताजी भी सीतापुर में वकालत करते थे। श्री त्रिवेदी उत्तर प्रदेश सरकार के स्थाई अधिवक्ता रहे तथा उन्हें लखनऊ पीठ का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।न्यायाधीश के रूप में उनकी प्रतिमा के सभी कायल थे । उनके पुत्रन्यायमूर्ति श्री डी0के0 त्रिवेदी लखनऊ पीछ के न्यायधीश हुए।

    श्री द्वारिका नाथ झा अवध बार के मंत्री रहे तथा बाद में इस पीठ में न्यायाधीश रहे एवं इस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद को भी सुशोभित किया। श्री एस0सी0 माथुर भी अवध बार के सदस्य रहे इस पीठ के न्यायाधीश रहे तथा जम्मूकश्मीर उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायधीश के पद को सुशोभित किया।

    वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी0एन0 माथुर ने भी कई वर्षो तक बार का नेतृत्व किया।

    हमारी बार के ही एक सदस्य श्री आर0एन0 त्रिवेदी इस प्रदेश के महाधिवक्ता नियुक्त हुए।

    इसी प्रकार अनगिनत नाम, अन गिनत प्रतिभा है, जो न्याय –कानून विधि के आकाश में चमकते अनके सितारे अवध बार एसोसिएशन ने उत्पन्न किए है। अवध बार एसोसिएशन के सदस्य आज उसकी चित्र विधिक के उद्घाटन के शुभ अवसर पर उन्ही की ऐतिहासिक परपंराओ से स्वयं को संबद्ध करते है, तथा अपने इतिहास द्वारा स्थापित आदर्श सेवा गौरवशाली परपंराओ की रक्षा का संकल्प लेते है।